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द्रव्यमान के संरक्षण का सिद्धांत

1974

द्रव्यमान संरक्षण का नियम, परिभाषा,

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द्रव्यमान के संरक्षण का सिद्धांत

यह सिद्धांत कहता है कि किसी भी बंद व्यवस्था (क्लोज्ड सिस्टम) में द्रव्यमान (mass) सदा ही संरक्षित रहता है। वह ना तो बढ़ता है और ना ही घटता है।

द्रव्यमान का ना ही सृजन हो सकता है तथा ना इसे नष्ट किया जा सकता है। परंतु वह आपस मे पुनर्व्यवस्थित अवश्य हो सकता है।

किसी भी रासायनिक प्रतिक्रिया में सारे अणु तथा परमाणुओं का वज़न प्रतिक्रिया के पूर्व तथा पश्चात समान ही रहता है।
परमाणु केवल पुनर्व्यवस्थित होते हैं। वे कहीं विलुप्त नहीं होते। और ना ही अपने आप पैदा हो जाते हैं।

 

द्रव्यमान संरक्षण का नियम किसने दिया था?

अन्टोइनै लावोइसिर का मानना था कि समस्त ब्रह्मांड का द्रव्य (matter) हमेशा स्थिर (constant) रहता है। समय के साथ इसमे परिवर्तन आए और कहा गया कि बंद व्यवस्था में द्रव्यमान संरक्षित रहता है।

किन्तु ये दोनो ही कथन मात्र क्लासिकल मैकेनिक्स का समर्थन करते हैं। अल्बर्ट आइंस्टीन ने तब एक नया सिद्धांत सबके समक्ष रखा, जो क्वांटम मैकेनिक्स, तथा सामान्य सापेक्षता (जनरल रिलेटिविटी) दोनो से सहमति दर्शाता है।

 

द्रव्यमान संरक्षण का नियम के महत्वपूर्ण तथ्य :-

  • इस नियम के अनुसार एक अलग प्रणाली में द्रब्यमान (mass) को ना तो बनाया ना ही किसी रासायनिक अभिक्रिया (Chemical reactions) द्वारा नष्ट किया जा सकता है।  

  • इस नियम के अनुसार रासायानिक अभिक्रिया में उत्पादों (Product) के द्रब्यमान अभिक्रिया के द्रब्यमान के बराबर होता है।  

  • इस नियम का प्रयोग कई गणनाओं में प्रयोग होता है।  जैसे अभिक्रिया के दौरान उपभोग (Consumption) या उत्पादित गैस (Produced gas) की मात्रा ज्ञात करने के लिए किया जाता है।  

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