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वसन्त पंचमी (सरस्वती पूजा) | Basant Panchmi (Saraswati Pooja)

मिथिला का प्रसिद्द लोक पर्व सामा चकेवा

 

बसंत पंचमी हर वर्ष हिन्दी पंचांग के अनुसार, माघ मास के शुक्ल पक्ष के दिन मनाया जाता है.  बसंत पंचमी हिंदुओं के प्रमुख त्योहार में से एक है. बसंत पंचमी को ज्ञान पंचमी और श्री पंचमी के नाम से भी जाना जाता है. बसंत पंचमी के दिन से ही वसंत ऋतु की शुरूआत होती है। इस दिन विद्या की देवी मां सरस्वती की आराधना की जाती है। इस दिन पीले रंग के वस्त्र पहन कर सरस्वती मां की पूजा का विधान है।

वसंत पंचमी को सभी शुभ कार्यों के लिए अत्यंत शुभ मुहूर्त माना गया है। मुख्यतयाः विद्यारंभ, नवीन विद्या प्राप्ति एवं गृह-प्रवेश के लिए वसंत पंचमी को पुराणों में भी अत्यंत श्रेयकर माना गया है।  यह पूजा पूर्वी भारत, पश्चिमोत्तर बांग्लादेश, नेपाल और कई राष्ट्रों में बड़े उल्लास से मनायी जाती है। इस दिन पीले वस्त्र धारण करते हैं। शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी से उल्लेखित किया गया है, तो पुराणों-शास्त्रों तथा अनेक काव्यग्रंथों में भी अलग-अलग ढंग से इसका चित्रण मिलता है।

कहा जाता है कि जब भगवान श्री ब्रह्मा जी ने इस संसार का निर्माण किया तो  सृष्टि का निर्माण करने के बाद ब्रह्मा जी अपनी रचना को देखने के लिए पूरी दुनिया के भ्रमण के लिए निकले. इस यात्रा के दौरान उन्होंने दुनिया को काफी शांत और उदास पाया जिसके बाद उन्होंने इसमें  कुछ बदलाव करना चाहे. इस सोच के साथ अपने कमंडल से ब्रह्मा जी ने कुछ जल अपने हाथ में लेकर हवा में फेका जिससे मां सरस्वती की उत्पत्ति हुई. मां सरस्वती हाथों में वीणा पकड़े दिखीं.  ब्रह्मा जी ने उनसे कहा की हममे ये सृष्टि तो बनाई पर ये काफी शांत है अतः आप अपनी बीणा से कुछ ऐसा कीजिये जिससे संसार के सभी प्राणि मंत्रमुग्ध हो जाये| और जब माँ सरस्वती ने ऐसा की तब सारी प्रकृति में ऊर्जा का नया रूप संचार हुआ|

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इसके बाद ब्रह्मा जी ने मां सरस्वती से आग्रह किया कि वह दुनिया में संगीत भर दें. उनकी आज्ञा का पालन करते हुए मां ने ऐसा ही किया. कहा जाता है कि मां के वीणा बजाने से संसार के सभी जीव-जंतुओ को वाणी प्राप्त हो जाती है. उसके बाद से उनका नाम 'सरस्वती' रख दिया गया. मां सरस्वती को संगीत के साथ ही विद्या और बुद्धि की भी देवी कहा जाता है. इस दिन के बाद से ही बसंत पंचमी के दिन घर में मां सरस्वती की पूजा की जाती है|  सरस्वती को वागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है।

वसंत पंचमी की एक और मान्यता है की इसी दिन ही कामदेव और रति ने पहली बार मानव ह्रदय में प्रेम और आकर्षण का संचार किया था। इस दिन कामदेव और रति के पूजन का उद्देश्य दांपत्त्य जीवन को सुखमय बनाना है, जबकि सरस्वती पूजन का उद्देश्य जीवन में अज्ञानरुपी अंधकार को दूर करके ज्ञान का प्रकाश उत्त्पन्न करना है।

वसंत पंचमी के दिन सरस्वती जी की पूजा कैसे करे|
सत्वगुण  से उत्पन्न होने  के कारण इनकी  पूजा में इस्तेमाल होने वाली सामग्रियां अधिकांशः  श्वेत वर्ण की होती हैं जैसे श्वेत चन्दन , श्वेत वस्त्र , फूल , दही-मक्खन , सफ़ेद तिल का लड्डू , अक्षत , घृत , नारियल और इसका जल , श्रीफल , बेर इत्यादि । इस  दिन सुबह स्नानादि के पश्चात श्वेत अथवा पीले वस्त्र धारण कर विधिपूर्वक कलश स्थापना करें । माँ सरस्वती के साथ भगवान गणेश , सूर्यदेव , भगवान विष्णु व शिवजी की भी पूजा अर्चना करें । श्वेत फूल-माला के साथ माता को सिन्दूर व अन्य श्रृंगार की वस्तुएं भी अर्पित करें । वसंत पंचमी के दिन माता के चरणों पर गुलाल भी अर्पित करने का विधान है । प्रसाद में  माँ को पीले रंग की मिठाई  या खीर का भोग लगाएं । यथाशक्ति ''ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः '' का जाप करें । माँ सरस्वती का बीजमंत्र '' ऐं '' है जिसके उच्चारण  मात्र से ही  बुद्धि विकसित होती है । इस दिन से ही बच्चों को विद्या अध्ययन प्रारम्भ करवााना चाहिए ।ऐसा करने से बुद्धि कुशाग्र होती है व माँ की कृपा जीवन में सदैव बनी रहती है।

 

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