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धर्मक तत्व ( Dharmak Tatva ) - खट्टर ककाक तरंग - हरिमोहन झा |

धर्मक तत्व

(खट्टर ककाक तरंग)

लेखक : हरिमोहन झा
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खट्टर कका आङ्गन में भोजन करैत रहथि । हमरा देखि बजलाह - आबह आबह । तोंहू बैसह ।

हम कहलिऎन्ह - खट्टर कका, हम तुरंत भोजन कैने छी । एकटा समाचार कहय आयल छलहुँ ।

ख० - से की ?

हम - आइ सभा छैक । धर्म पर व्याख्यान हेतैक । अहूँ चलब ?

खट्टर ककाक ठोर पर मुसकी आबि गेलैन्ह । बजलाह - बैसह,बैसह । तों धर्म ककरा कहैत छहौक ?

हम कहलिऎन्ह - खट्टर कका, जखन बड़का बड़का पंडित धर्मक व्याख्या नहिं कय सकै छथि त हम की कहि सकैत छी ?

धर्मस्य तत्वं निहितं गुहायाम ।

खट्टर कका बजलाह – हौ, एहीठाम त घुड़किल्ली छैक । 'गुहायाम' पदक अर्थ बड्ड गूढ छैक । ओतेक दूर धरि प्रवेश हैब कठिन ।

हम आसन पर बैसि गेलहुँ । कहलिऎन्ह - खट्टर कका, हम त मोट बात जनैत छी हमरा लोकनिक पूर्वज जे सदा सॅं करैत एलाह अछि, से धर्म थीक। जे बात नहिं करैत ऎलाह अछि, से अधर्म थीक ।

खट्टर कका एकटा भँटबर खोंटैत बजलाह - तखन त हर जोतब धर्म थीक, और 'ट्रैक्टर' चलायब अधर्म थीक ? खरखरिया पर चलब धर्म थीक और हेलिकोप्टर पर उड़ब अधर्म थिक ?

हम कहलिऎन्ह - खट्टर कका, अहाँ सॅं के तर्क करौ ? परन्तु हम सोझ सोझ बुझैत छी - महाजनो येन गतः स पन्थाः ।

खट्टर कका कैं हॅंसी लागि गेलैन्ह । बजलाह - जतेक सोझ तों बुझैत छहौक ततेक नहिं छैक । महाजन क एक बाट रहैन्ह तखन ने ! रामचन्द्रक मार्ग छैन्ह मार्यादापालन कृष्णचन्द्रक मार्ग छैन्ह – रासलीला। महावीर जिनक मार्ग छैन्ह अहिंसा परमो धर्मः । महावीर हनुमान क मार्ग छैन्ह - शठे शाठ्यं समाचरेत् । सभ त पुज्ये छथि आब किनकर मार्ग अनुशरण कैल जाय ?

हम कहलिऎन्ह - खट्टर कका, मनुजी दसटा धर्म गना गेल छथि -

 

धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रिय-निग्रहः ।

धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम ॥

 

एहि में त कोनो संदेह नहि होमक चाही ।

खट्टर कका तिलकोरक तरुआ कुड़कुड़बैत बजलाह – हौ, ई सभ श्लोक अनका फुसियाबक हेतु होइ छैक । जौं पाण्डव धैर्य कऽ कऽ बैसि जैतथि, त महाभारत किऎक होइत ? यदि रामचन्द्रजी रावण कैं क्षमा कऽ दितथिन्ह , त लंकाकांड किऎक मचैत ? जे समर्थ अछि तकरा हेतु स्त्रैण धर्म नहिं होइ छैक। जे अब्बल-दुब्बर अछि तकरे सन्तोषार्थ ई सभ मोसम्माती धर्म बनाओल गेल छैक । अबला धैर्य कऽ कऽ बैसि जाइत अछि । नपुंसक मारि खा कऽ रहि जाइत अछि । परन्तु जे सबल छथि , शासक छथि , तिनकर दोसरे धर्म होइ छैन्ह ।

हम - हुनकर धर्म की होइ छैन्ह ?

ख० - जाहि सॅं हुनकर इच्छा-पुर्ति होइन्ह , सैह हुनक धर्म होइ छैन्ह । से जाहि प्रकारे होइन्ह । शत्रु क छाती पर चढि कऽ, अथवा युवती क । बंदूकक जोर सॅं , बा संदुकक जोर सॅं । अबल घर में एकटा खून करै अछि त फाँसी पड़ैअछि । सबल युद्ध में सै टा खुन करै छथि त वीर कहबैत छथि । यैह पुरुषाह धर्म थिकैक ।

हम - परन्तु व्यासजी त कहि गेलाह अछि जे -

 

अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम् ।

परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम ॥

 

जाहि सॅं दोसराक उपकार होइक से धर्म थीक, जाहि सॅं दोसरा कैं दुःख पहुँचैक से पाप थिक ।

खट्टर कका एकटा तरुआक स्वाद लैत बजलाह – हौ, यदि यैह बात, तखन प्राणायाम कैं धर्म, और पलांडु-भक्षण कैं अधर्म किऎक मानल जाय ? हम नाक मुनि लेब ताहि सॅं अनकर की उपकार हैतैक ? हम पेयाज क तरुआ खायब ताहि सॅं अनकर की बिगरतैक ? ........और यदि दोसरा कैं आनन्द देव सैह धर्म, तखन त व्यभिचारो कैं धर्मे कऽ कऽ बुझक चाही ?

हम कहलिऎन्ह - खट्टर कका, अहाँ त तेहन तेहन युक्ति दैत छिऎक जे धर्मक अस्तित्वे लोप भऽ जाय। एही द्वारे पंडित लोकनि अहाँ कैं नास्तिक कहै छथि।

खट्टर कका मिरचाइक अँचार खोंटैत बजलाह – हौ, ई की हम अपना दिस सॅं कहैत छिऔह ? स्वयं कुमारिल भट्ट कहि गेल छथि-

 

कोशता हृदयेनापि गुरुदाराभिगामिनाम।

भूयान धर्मः प्रसज्येत भूयसी ह्युपकारिता॥

 

अर्थात " यदि दोसरा कें आनन्द प्रदान करबे धर्म थीक तखन त गुरुपत्नीगमन करयवाला सेहो धर्मात्मा थिक। " श्लोक-वार्त्तिक में देखह जे धर्म पर एहन- एहन कतेक रासे शास्त्रार्थ छैक। परन्तु से सभ ग्रन्थ त तोरा लोकनि देखबह नहिं, सोझे खट्टर झा कैं गारि पढ़बहुन।

हम-तखन धर्म परोपकारमलक नहिं थीक?

खट्टर कका अरिकोंचक चक्का मुँह में दैत बजलाह - तों एखन नेना छह। जखन परिपक्व हैबह तखन बुझबहौक जे-

 

अष्टादश पुराणेषु खट्टरस्य वचोद्वयम् ।

निजोपकारः पुण्याय पापाय निजपीडनम् ॥

 

जाहि सॅं अपन उपकार हो, सैह धर्म थीक। और जाहि सॅं अपना दुःख पहुँचय, सैह पाप थीक।

हमरा मुँह तकैत देखि खट्टर कका बजलाह-हौ, परमार्थो क चक्का चलैत छैक से स्वार्थेक धुरी पर। दान-पुण्य कि ओहिना कैल जाइ छैक ? केओ नाम लेल करै अछि, केओ स्वर्ग लेल । सभ में अहंभाव रहै छैक। यदि स्वार्थ क तेल निघॅंटि जाइक त धर्मक बाती तुरंत मिझा जाय । तैं अनुभवी आचार्य लोकनिक सिद्धान्त छैन्ह – आत्मा रक्षितो धर्मः ।

हम - खट्टर कका, अहाँ त लोक कैं संशय-जाल में धऽ दैत छिऎक । परन्तु हम कहब जे सभ जीब पर दया राखी, यैह सभ सॅं बड़का धर्म थिकैक ।

खट्टर कका ओलक साना में जमीरी नेबो गारैत बजलाह - कनेक बुझा कऽ कहह । हमरा खाट में उड़ीस भरल अछि । तकरा भरि राति अपन सोणित पीबय दिऎक ? राति में बहुत रासे मच्छर कटैत अछि । तकरा धूआँ नहि लगविऎक ? लतामक गाछ में बिढनी खोंता लगौने अछि ।तकरा नहिं उड़बिऎक ? तोरा काकीक केश में ढील फरल छैन्ह । से नहिं मारथि ? पुरना घर सॅं साँप बहराइत अछि । तकरा ओहिना सहसह करैत छोड़ि दिऎक ? यदि मनुष्य सभ जीव पर दया करऽ लागय, त जीवित रहि सकैत अछि ?

हम - खट्टर कका, अहाँक जीरह में ठठब त मुश्किल । परन्तु जहाँ धरि भऽ सकय, अहिंसा ओ प्रेम सॅं काज लेबक चाही ।

खट्टर कका ओलक चटनी चटैत बजलाह – हौ, यैह बात त हमरा बूझऽ में नहिं अबैत अछि। सभ मनुष्य की दया क पात्र होइत अछि ? मानि लैह, एकटा आततायी तोरा घर में पैसि जाओ और आङ्गन में बलात्कार करय लागि जाओ त एहना स्थिति में तोहर की कर्तव्य हैतौह ? ओकरा पंखा होंकय लगबहौ क ? ठढइ-शरबत आगाँ में बढा देबहौक ? अन्त में चलबा काल जनउ-सुपारी दऽ कऽ विदा करबहौक ?

हम कहलिऎन्ह - खट्टर कका, अहाँ त तेहन दृष्टान्त दऽ दैत छी जे हमर मुँहे बन्द भऽ जाइ अछि । परन्तु एतबा त अहूँ मानव जे सभ धर्मक मूल थिक इन्द्रिय-दमन ।

खट्टर कका तेतरिक खटमिट्ठी चभैत बजलाह – ई बात जे परचारि गेल से भारी अभागल छल । हम त बुझैत छी जे चटकार भोजन करब धर्म थीक और जीभ कैं कष्ट देनाइ सैह अधर्म थीक ।

हम - परन्तु इन्द्रिय-सुख त अत्यन्त तुच्छ वस्तु थीक। तैं इन्द्रिय-निग्रह .......

खट्टर कका कैं क्रोध उठि गेलैन्ह । बजलाह – हौ , यदि इन्द्रिय एहन अधलाह वस्तु थीक, त विल्वमंगल जकाँ आँखि फोड़ि लैह । जड़भरत जकाँ नाक-कान मुनि कऽ बैसि रहह ।

हम - हमर अभिप्राय ई जे ब्रह्मचर्य-पूर्वक ......

‘ब्रह्मचर्य' क नाम सुनैत खट्टर कका उत्तेजित भऽ गेलाह । बजलाह - ब्रह्मचर्यक अर्थ ब्रह्म समान चर्या । ब्रह्म नपुंसक लिंग छथि अतएव ब्रह्मचर्यक अर्थ भेल नपुंसकवत् आचरण । एकरे तों धर्म कऽ कऽ बुझैत छह ?

हम - खट्टर कका, लिखलकैक अछि -

मरणं विंदुपातेन जीवनं विंदुधारणात् ।

खट्टर कका कड़कि कऽ बजलाह - अशुद्ध ।

जीवनं विंदुपातेन मरणं विंदुधारणात ।

विंदुपाते सॅं जीवनक सृष्टि होइ छैक । यदि सभ अपन विंदु अपना कोषागारे में रखने रहि जाय त ई सृष्टि कोना चलत ? हौ, धर्म ककरा कही ? जाहि सॅं सृष्टि क धारण हो । आब तोंही कहह जे असली धर्म की थीक ? विंदु रक्षा अथवा विंदुपात ?

हम - तखन ब्रह्मचारी बनब मुर्खता थीक ?

खट्टर कका दहबड़ चभैत बजलाह - एहि अर्थ में अवश्य मुर्खता थीक। परन्तु जिनका सामर्थ्य होइन्ह से दोसरा अर्थ में ब्रह्मचारी बनि सकैत छथि । ब्रह्म स्वच्छन्द होइ छथि । तैं ब्रह्मचारी क अर्थ स्वच्छंदाचारी । जेना संन्यासी। संन्यासी क अर्थ जे सम्यक् प्रकारें न्यास अथवा त्याग करथि । तैं ओ लोकनि सामाजिक बंधन कैं त्याग कऽ दैत छथि । अर्थात आरि-धूरक सीमा नहि रखैत छथि । ठेठ भाषा मे साँढ बूझह । तैं बहुत गोटा अपना नाम में 'गोस्वामी' शब्द जोड़ि लैत छथि ।

हम – 'गोस्वामी' क ई अर्थ हमरा नहि बूझल छल ।

खट्टर कका कुम्हरौरीक झोर चखैत बजलाह - तोरा बुझले की छौह ? ओ लोकनि जे दंड-कमण्डलु रखैत छथि से कथीक प्रतीक थिकैन्ह ? कनेक आकार पर ध्यान दहौक । तखन बुझा जैतौह । भातिज थिकाह । बेसी खोलि कऽ कोना कहिऔह ?

तावत् काकी एक छिपली तरल माछ आगाँ में धऽ गेलथिन्ह ।

खट्टर कका बजलाह – बस, आब गप्प जमि गेल । पूछह की पुछैत छह ?

हम कहलिऎन्ह - खट्टर कका, अहाँक सभटा गप्प अद्भूते होइ अछि । परन्तु साधु-संत त त्यागी होइ छथि । चारि आँगुर कौपीन पहिरि कऽ रहैत छथि

खट्टर कका एकटा खूब झूर पलइक स्वाद लैत बजलाह – हौ एकटा पिहानी छैक -

 

बुड़िबक एक चलल ससुरारि बाटहि भगबा लेलक उतारि ।

 

से ई लोकनि स्वर्गक अप्सरा लेल ततेक ललाएल रहै छथि जे एहीठाम धोती खोलि कऽ राखि दैत छथि । कतेक गोटा त ओहो चारि आँगुरक बिष्ठी फोलि, सोझे नागा बनि जाइत छथि । परन्तु हौजी ! यदि कदाचित् ओहूठाम 'नागा' (सुन्य) भऽ जाइन्ह तखन त ठिठियाएले रहि जैताह ।

हम - खट्टर कका, एतेक रासे योगी जे योग साधन करै छथि से ````

ख० – सभटा भोगे निमित्त । भोग क साधन योग । विचारि क देखह त बिना 'युज' धातुक सहायता सॅं 'भुज्' धातुक क्रिया भइए नहि सकैत छैक ।

हम-परन्तु ओहिठाम 'युज'क अर्थ छैक आत्मा ओ परमात्माक मिलन।

ख०-परमात्मा नहि, परात्मा। आत्माक अर्थ अपन शरीर। परात्माक अर्थ अनकर शरीर। ओही दूनूक मिलन योग थीक। वैह सम्यकऽ प्रकार सॅं हो त 'संयोग' कहबैत अछि।

हम-अहाँ त विलक्षणे अर्थ लगा दैत छिऎक। योगी कैं भोग सॅं कोन मतलब?

खट्टर कका तृप्तिपूर्वक तरल माछक आस्वादन लैत बजलाह- सोरह आना मतलब। ओ बुझैत छथि जे एहि नाक (नासिका) क रंध्र दबौने ओहि नाक क द्वार फुजि जाएत। एतय कुंडलिनी (योग) जगौने ओतय कुंडलिनी (कुण्डल वाली सुन्दरी) भेटि जैतीह । एहि ठाम खेचरी (मुद्रा) सधने ओहिठाम खेचरी (आकाश-विहारिणी परी) प्राप्त भऽ जैतीह। जे एहिठाम नारी कैं नरकक खानि कहैत छथि सेहो नारिए खातिर स्वर्ग जाय चाहैत छथि।

हम- और एतेक रासे जे पूजापाठ होइत अछि ॱ ॱ ॱ

ख०- से सभटा स्वर्गेक निमित्त। रंभाक लोभ सॅं लोक भगवान कैं रंभाफल चढबैत छैन्ह । तिलोत्तमाक लोभ सॅं तिल छिटैत छैन्ह। यदि लोक कैं निश्चय भऽ जाइक जे स्वर्गक फाटक एक टाटक मात्र थीक त आइए सभटा त्राटक ओ पूजाक नाटक समाप्त भऽ जाय। जखन चन्द्रमुखी भेटयवाली नहिं, त लोक गोमुखी में हाथ दय जप किऎक करत? यदि मृगनयनी नहिं, त मृगछाला किऎक पहिरत ? यदि षोडशी नहिं, त एकादशी किऎक करत ?

हम- अहा! खट्टर कका! अलंकार क धारा बहि गेल। आब अहाँ तरंग में आबि गेलहुँ।

ताबत् काकी एक बाटी झोराओल माछ नेने एलथिन्ह ।

खट्टर कका बजलाह - एहन रंग पर जौं तरंग नहिं चलय त कथी पर ?

हम कहलिऎन्ह - खट्टर कका, मानि लेल जे कामक वेग प्रबल थीक । परन्तु लोक मर्यादा त बान्हि सकैत अछि । जेना पतिव्रता स्त्री

'पतिव्रता' क नामे सुनैत खट्टर ककाक आँखि चढि गेलैन्ह । बजलाह – हौ, पतिव्रता स्त्री सन संकिर्ण ओ स्वार्थिनी संसार में केओ नहि होइ अछि ।

पुनः अपना स्त्री कैं देखि कहलथिन्ह – अहाँ आउ ने एहिठाम ठाढ भऽ कऽ गप्प की सुनै छी ?

हुनका गेला पर हम कहलिऎन्ह - खट्टर कका, अहाँक सभ बात आश्चर्ये होइ अछि । जखन पतिव्रता अधलाह, तखन अहाँ स्त्री जाति कैं श्रेष्ठ ककरा बुझैत छिऎक ?

खट्टर कका माछक काँट छोड़बैत बजलाह – वेश्या कैं ।

हम - खट्टर कका, अहाँ कैं भांग लागल अछि ।

खट्टर कका बजलाह – हौ, भांग त हमरा लगले रहै अछि । भोरे हरियरका माजूनक बर्फी लऽ कऽ जलखइ भेलैक अछि । परन्तु हम तोरा पुछैत छिऔह जे यदि वेश्या सर्वश्रेष्ठ नहि रहैत त नित्य स्वर्ग में कोना निवास करैत ? बड़का बड़का धर्मात्मा लोकनि पुण्यक्षय भऽ गेला उत्तर पुनः मर्त्यलोक मे आबि जाइ त छथि।"क्षीणे पुण्ये मर्त्यलोकं विशन्ति।" परन्तु रंभा, उर्वशी, तिलोत्तमा आदि ओतय अक्षय सुखक भोग करैत छथि । कोनो कुलवधू कैं ई सौभाग्य प्राप्त छैन्ह ?

हम - खट्टर कका, कहाँ कुलवधू ओ कहाँ वेश्या ! दूनू में कतबा अन्तर छैन्ह ।

ख० – जतबा अन्तर एक चुकड़ी पानि ओ महानदीक धारा में। एक क्षुद्रघंटी थीक, दोसर उदारताक प्रतीक। जे केवल एक गोटाक काज आएल, सेहो कोनो देह थीक ? सराही ओहि शरीर कैं, जे अनेकक काज आबय ।

हम - खट्टर कका, एहि सभ बात सॅं सतीत्व धर्म पर आघात पहुँचत ।

ख० – हौ, सतीत्व-धर्म सॅं बेसी प्रबल थिकैक प्रकृति-धर्म , जे श्रृष्टिक आदि-काल सॅं चलि रहल छैक । सतीत्व त हमर तोहर बनाओल अछि ।

हम- तखन पातिव्रत्य कैं अहाँ ईश्वरीय आज्ञा कऽ कऽ नहिं बुझैत छिऎक ?

खट्टर कका विहुँसैत बजलाह – हौ, ईश्वर कैं सभ ठाम किऎक घसिटैत छहुन्ह ? हुनका कि एतबे काज छैन्ह जे दुरबिन लगौने बैसल रहथि ?

हम - तखन इ वस्तु चलल कोना ?

खट्टर कका प्रेम सॅं रोहुक सीरा सॅं घी बाहर करैत बजलाह – हौ, हमरा लोकनिक पुरखा चलाक छलाह । बुढारियो में कै कै टा कय कऽ अनैत छलाह । कहाँ धरि युवती सभक रखबारी करितथि ! तैं किछु श्लोक बना कऽ पैर छनि देलथिन्ह । चार्वाक त साफ कहै छथि जे -

 

पातिव्रत्यादि संकेतः बुद्धिमद्दुर्बलैः कृतः ।

रूपवीर्यवता सार्ध स्त्रीकेलिमसहिष्णुभिः ॥

 

खट्टर कका एक लोटा पानि पिउलन्हि । पुनः बजलाह - असल में बूझह त जकरा लोक पातिव्रत्य कहैत छैक, सैह व्यभिचार थीक ।

हम कहलिऎन्ह - खट्टर कका ,

कबीरदास केर उनटे बानी, बरिसय कंबल भीजय पानी !

अहाँ कैं निश्चय नशा लागल अछि ।

खट्टर कका गम्भीरतापूर्वक बजलाह – हौ, नशा त हमरा लगले रहैत अछि । परन्तु कनेक अपने विचारि कऽ देखह व्यहिचारक अर्थ की । नियम क अप वाद । आब देखह जे स्वभाविक नियम की थिकैक ? नर ओ मादा क संयोग सॅं स्वभावतः गर्भाधान भऽ जाइ छैक । ओहि खातिर ने सहनाइ बजैबाक काज, ने शंख फुकबाक । सिंदुरदान ओ गठबंधन त केवल आडम्बर थिकैक। स्त्री कैं महिष जकाँ नाथक हेतु । देखै छह नहिं ? एखन धरि पतिव्रता स्त्री अपना पति कैं 'नाथ' कहैत छथि । हौ, प्राणी मात्र कैं मैथुन कर्म में स्वतंत्रता छैक । केवल मनुष्य एहि नियम कैं उल्लंघन कय स्त्री क पैर में छान लगा दैत अछि । एही द्वारे हम पातिव्रत्य-धर्म कैं व्यभिचार कहैत छिऎक ।

हम - खट्टर कका बजलाह – हौ, सती क अर्थ की ? उत्तम । उत्तम के थीक ? जे अपन अधिकारक रक्षा करय । तुलसीदास कहै छथि-

जिमि स्वतंत्र होइ बिगड़हिँ नारी ।

हम कहै छी -

जिमि स्वतंत्र होइ सुधरहिँ नारी ।

जे नारी पुरुषक दासत्व-श्रृंखला सॅं मुक्त भय अपना कैं स्वतंत्र राखि स्वाभाविक नियमक पालन करैत अछि सैह उत्तम वा सती कहाबय योग्य अछि। एहि द्वारे हम वेश्या कैं सर्वश्रेष्ठ नारी कऽ कऽ बुझैत छी । पतिव्रता स्त्री भुसकौल होइ छथि ।

हम - खट्टर कका, अहाँ हँसी करैत छी ।

ख० - से आब तों जे बुझह ।

ताबत काकी दही लऽ कऽ पहुँचि गेलथिन्ह ।

हम पुछलिऎन्ह - खट्टर कका, अहाँ कैं स्वर्ग में विश्वास नहिं अछि ?

खट्टर कका दही भात सनैत बजलाह – हौ, यदि एको गोटा ओतय सॅं आबि कऽ कहैत तखन ने विश्वास होइत । परन्तु आइ धरि जे गेलाह से फिरि कऽ कह नहिं एलाह । और जे लोकनि कहै छथि से गेले नहिं छथि । तखन हुनका बात क कोन प्रतीति ?

हम - खट्टर कका, यदि एहि में किछु तत्व नहिं रहितैक त एतबा दिन सॅं ई बात कोना चलि अबैत ?

ताबत काकी दू टा कृष्णभोग आम नेने एलथिन्ह ।

खट्टर कका दही भात में आम क रस गारैत बजलाह – हौ, तत्व यैह छैक जेलोक कैं पृथ्वी पर भोग सॅं तृप्ति नहि होइ छैक । तृष्णाक कोनो अन्त नहिं छैक । परन्तु जीवन परिमित; देहक शक्ति अल्प ; थोड़बे दिन में बुढापा पहुँचि जाइ छैक; और कामना बनले रहि जाइ छैक, ताबत् खेल खतम भऽ जाइ छैक। एही द्वारे लोक कल्पना सॅं पुर्ति करै अछि। जे सिहन्ता एहि जन्म में नहिं पूर्ण भेल से मुइला क बाद पूर्ण भऽ जाएत । एहन ठाम जायब जहाँ जरा-मरण नहिं। अजर-अमर भऽ कऽ रहब । ओतय खैबाक हेतु मिष्टान्न , पीबाक हेतु अमृत, भोग करबाक हेतु सुन्दरी । और सभटा मुफ्ते । एको कैंचा खर्च नहिं । ने खेती करबाक झंझट, ने आरि-धूरक तकरार , ने मामिला-मोकदमा क बखेड़ा कल्पवृक्ष तर बैसि जाउ, जे इच्छा हो से मांगि लियऽ । राबड़ी पीबाक मन हो, काम- धेनु कैं कहि दिऔन्ह । विहार करबाक हो , अप्सरा क झुंड में सन्हिया जाउ। ई सुरालय की भेल श्वशुरालय भेल । बल्कि ताहू सॅं सहस्रगुना बढि कऽ।सासुर में त एकटा षोडशी पर सोरह आना अधिकार भेटैत छैक । परन्तु स्वर्ग में त सोरह हजार षोडशी अपन सोरहन्नी अदाय करबाक हेतु ठाढि रहैत छथि । ओहि ठाम कोनो सार-ससुर रोकयबाला नहिं । सभ सारिए सारि । और सभ अक्षय यौवना ! आब एहि सॅं बढि की चाही ? परन्तु हौ जी ! एक बात बड्ड गड़बड़ ।

हम - से की, खट्टर कका ?

खट्टर कका आमक चोभा लगबैत बजलाह - विचारि कऽ देखह त लोक स्वर्ग गेने अगत्ती भऽ जाइ अछि ।

हम - से कोना खट्टर कका ?

ख० - मानि लैह जे तोहर सातो पुरखा स्वर्ग गेलथुन्ह । आब ओही अप्सरागन कैं सातो पितर भोग कैने होइथुन्ह । और तोंहू जैबह त सैह करबह । तैं हम कहै छिऔह जे स्वर्ग गेने धर्म नष्ट भऽ जाय ।

हम - खट्टर कका, अहाँ त तेहन बात बाजि देलहुँ जे आब लोक कैं स्वर्गो जैबा में मन भटकि जैतैक ।

खट्टर कका मुस्कुराइत बजलाह - हम की अयुक्त कहै छिऔह ?

हम कहलिऎन्ह - खट्टर कका, आब हँसी नहि करू । हमर बुद्धि काज नहिं करैत अछि । अहीं कहू जे धर्म की वस्तु थीक ।

हम कहलिऎन्ह - खट्टर कका, आब हँसी नहि करू । हमर बुद्धि काज नहिं करैत अछि । अहीं कहू जे धर्म की वस्तु थीक ।

खट्टर कका चूर लैत बजलाह - हौ, समस्त धर्मक रहस्य हम एके श्लोक मे कहि दैत छिऔह -

 

कृतः धर्म प्रपंचोऽयं परमुष्ट्यां पतेन्नहि ।

कदाचित् स्वकृशग्रीवा पत्नीपीनस्तनोऽथवा ॥

 

‘अपन कमजोर गरदनि ओ पत्नीक पुष्ट स्तन, ई दूनू वस्तु दोसरा क मुट्ठी में नहिं जाय' – एही हेतु एतबा रास धर्माधर्म क प्रपंच रचल गेल अछि ।

हम विस्मित होइत पुछलिऎन्ह - खट्टर कका, ई बंधन अहांक दृष्टि में कृतिमथीक । तखन असली की थीक ?

खट्टर कका बिहुँसैत बजलाह - असली धर्मक परिभाषा देखबाक हो त मिमांसा-सूत्र देखह । आदिए में भेटि जैतौह ।

हम - ओ कोन सूत्र थिकैक ?

खट्टर कका बजलाह - ओ धियापुताक समक्ष उच्चारण करबा योग्य नहिं छैक। कोनो मिमांसक सॅं पूछि लिअहुन । टीकाकार लोकनि त बहुत रासे गोबर- माटि लगौने छथि । परन्तु हम सोझ-सोझ अर्थ बुझै छी । जाहि सॅं श्रृष्टिक काज आगाँ बढय सैह धर्म थीक । से जिनका में जतेक सामर्थ्य होइन्ह ।

ई कहैत खट्टर कका अचावक हेतु उठि गेलाह ।

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