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प्राचीन आदर्श ( Prachin Adarsh ) - खट्टर ककाक तरंग - हरिमोहन झा |

प्राचीन आदर्श

(खट्टर ककाक तरंग)

लेखक : हरिमोहन झा
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खट्टर कका हमरा हाथ में मोटगर पुस्तक देखि पुछलन्हि - हौ, ई की थिकैक ?

हम कहलिऎन्ह - आदर्श चरितावली ।

खट्टर कका उनटबैत-पुनटबैत बजलाह – ई सभ पढने माथा खराब भऽ जैतौह ।

हम - खट्टर कका, ई की कहैत छी ? एहि में एक सॅं एक आदर्श चरित्र भरल छथि जिनकर अनुकरण कैने परम पद प्राप्त भऽ जाय ।

खट्टर कका मुसकुराइत बजलाह - परम पद हो वा नहिं, किन्तु परम आपद धरि अवश्ये भऽ जाय !

हम - से कोना, खट्टर कका ?

खट्टर कका ताखपर सॅं सोंटा-कुंडी उतारैत बजलाह – हौ, आइ जौं केओ माखन-चोर वृन्दावन-विहारी जकांँ चीर-हरण करैत् 'गोपी-पीन-पयोधर-मर्दन-चंचल करयुगशाली' क अनुकरण करय लागि जाथि त की गति हैतैन्ह ? जेल,अस्पताल वा पागलखाना !

हम - खट्टर कका, अवतार क त गप्प हो नहिं । ओहन लीला कि मनुष्य कऽ सकैत अछि ? परन्तु मानव चरित्र देखू ।

खट्टर कका- तोरा कोन मानव-चरित्र सभ सॅं बेसी आदर्श बूझि पड़ैत छौह ?

हम – सत्यवादी दानवीर राजा हरिश्चन्द्र ।

खट्टर कका भांगक पुड़िया बाहर करैत बजलाह - आइ जौं हम हुनक अनुकरण करय लागि जाइ त लोक हरी में ठोकि देत ।

हम - से कोना ?

खट्टर कका - मानि लैह, जे राति में स्वप्न देखल जे तोरा काकी कें कुशतिल गंगाजल लऽ संकल्प कय, अब्दुल्ला मियाँ कैं दान कऽ देलिऎन्ह । आब जौं हम अन्नपानि त्यागि 'हाय अब्दुल्ला ! हाय अब्दुल्ला !’ करय लागी और कतहु सॅं ओकरा जोहि, जबर्दस्ती तोरा काकी कैं ओकरा पाछाँ लगा दिऎन्ह त लोक की कहत ? सम्मत वा बाताह ?

हम - खट्टर कका, ओहिठाम तात्पर्य छैक सत्य क महिमा देखैबाक, जे स्वप्नो में देल वचन पालन करक चाही ।

खट्टर कका भांग रगड़ैत बजलाह – हौ, एही ठाम त मुर्खता प्रारंभ भऽ जाइत छैक । स्वप्न में लोक कतेक उटपटांग बात देखैत अछि । जौं तकरा सत्य मानि लोक चलऽ लागय त कि एको दिन निमहि सकैत छैक ? मानि लैह, स्वप्न मे तों हमर खेत केबाला लेलह । त कि जगला पर हम तोरा दस्तावेज बना देबौह ? परन्तु की कहिऔह ? एहि देश में त जाग्रत अवस्था सॅं बेसी स्वप्ने कमहत्व छैक ।

हम - से कोना, खट्टर कका ?

खट्टर – देखह, एहि देशक दर्शन छैक ? वेदान्त। और वेदान्त क भवन कथी पर ठाढ छैक ? स्वप्न क अनुभव पर । संपूर्ण संसार स्वप्नवत थीक । पृथ्वीक अन्यान्य देश जाग्रत अनुभव पर चलैत अछि । परन्तु हमरा लोकनि क आदर्श अछि सुषुप्तावस्था । बल्कि एक डिग्री ओहू सॅं बेसी - तुरीयावस्था ! हौ, हम पुछैत छिऔह, यदि समस्त भारतीय तुरीयावस्था कैं प्राप्त कय मुर्दा सॅं बाजी लगा कऽ पड़ि रहथि त देश क की दशा हेतैक ?

हम - खट्टर कका हमरा सभक सिद्धान्त थीक -

 

या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी ।

यस्यां जागर्ति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः ॥

 

खट्टर कका बजलाह – हॅं । जखन समस्त संसार जगैत अछि तखन हम फोंफ कटैत छी और रात्रि क अंधकार में जगैत छी। भऽ सकैछ जे कोनो पक्षी- विशेष सॅं हमरा लोकनि कैं ई प्रेरणा भेटल हो ।

हम - खट्टर कका, अहाँक व्यंग्य बड्ड तीक्ष्ण होइत अछि ।

खट्टर कका मुसकुराइत बजलाह - हम कि कोनो बेजाय कहैत छिऔह ? एहि देशक पक्षीओ सभ तत्वदर्शी होइ छथि । शुक, जटायु, गरुड़, काकसभ त हमरा सभक गुरुए थिकाह । और उलूक पक्षी क त कोनो कथे नहिं । यदि हुनका में विशेष महत्व नहिं रहितैन्ह त वैशेषिक-कर्ता कणाद कैं वैह नाम किऎक पडितैन्ह ।

हम क्षुब्ध होइत कहलिऎन्ह- खट्टर कका, एहि पुस्तक में एतेक रास उपाख्यान छैक , ताहि में एकोटा आदर्श चरित्र अहाँ कैं नहि भेटैत अछि ?

खट्टर कका- तोंही देखाबह ।

हम – देखू, भीष्म पितामह केहन आदर्श छलाह ज

खट्टर कका- जे कौरब क भरल सभा में द्रौपदी कैं नग्न होइत देखलथिन्ह, तथापि चुपचाप घाड़ खसौने बैसल रहलाह !

हम - प्रह्लाद ओ विभीषण केहन आदर्श छलाह जे  

खट्टर कका - एक गोटा बाप कैं मरबौलन्हि, दोसर भाइ कैं । भगवान ने करथु जे एहन-एहन आदर्श फेर भारतवर्ष में जन्म लेथि ।

हम - परन्तु कहल जाइ छैक जे -

 

अश्वत्थामा बलिर्व्यासः हनुमांश्च विभिषणः ।

कृपः परशुरामश्च सप्तेतै चिरजीविनः ॥

 

खट्टर कका - एकर असली अर्थ बुझलहक ? दरिद्र ब्राह्मण, मूर्ख राजा, खुशामदी पंडित, हुड्ड सेवक, कृतघ्न भाइ, दंभी आचार्य, एवं क्रोधी विप्र – ई सातो आदर्श एहि भूमि पर बहुत दिन धरि कायम रहताह। ई एहि देश क दुर्भाग्य बुझह।

हम - खट्टर कका, अहाँ त सभटा अद्भुते अर्थ लगबैत छी । परंच एही देश में शिवि ओ दधीचि सन आदर्श दानी सेहो भऽ गेल छथि ।

खट्टर कका व्यंग्य करैत बजलाह – हॅं । राजा शिवि अपन मांस काटि कऽ दान कैलन्हि और दधीचि अपन हड्डी । यदि हमहूँ ककरो मङ्गला पर अपन नाक काटि कऽ दऽ दिऎक त तों हमरा आदर्श कऽ कऽ बुझबह ?

हम - खट्टर कका, अहाँ त तेहन छौ लगबैत छिऎक जे जड़िए सॅं साफ कऽ दैत छिऎक । आब ककरो नामो लैत डर होइ अछि । राजा नल कैं अहाँ केहन बुझैतछिऎन्ह ।

खट्टर कका - कापुरुष ।

हम - से किऎक ?

खट्टर कका भांगक गोला बनबैत बजलाह – हॅं , आइ यदि तों जूआ में अपन घर-द्वार, खेत-पथार, डीह-डाबर, सभ किछु गमा आबह और हमरा भतिज-पुतोहु कैं लय जंगल क बाट धरह और ओहि ठाम अकाय वन में हुनका सुतले छोडि - बल्कि हुनका देह सॅं चुपचाप नूआ फोलि, हुनके साडीक आँचर फाड़ि क पहिरि - कतहु पड़ा जाह, त तोरा हम की कहबौह ? महापुरुष वा कापुरुष ?

हम – खट्टर कका, राजा नृग क उपाख्यान लियऽ ।

खट्टर कका पुनः व्यंग्य करैत बजलाह – हॅं , राजा नृग सहस्रो गाय दान कैलन्हि से त गेल कोठी क कान्ह पर । और एकटा गाय धोखा सॅं वापस आवि गेलैन्ह त ओहि पाप सॅं हजारो वर्ष धरि इनार में गिरगिट भेल पडल रहलाह । हौ, राजा नृग कैं जौं कनेको संस्कार लेश छल हैतैन्ह त फेर दोसर जन्म में एकोटा गोदान क नाम नहिं नेने हैताह ।

हम - खट्टर कका, शंख ओ लिखित केहन छलाह ?

खट्टर कका –दूनू उपर्युपरि छलाह। यदि ओहने बुद्धि सभकैं भऽ जाइक त सम्पूर्ण देश पागलखाना बनि जाय ।

हम - से कोना, खट्टर कका ?

खट्टर कका भांग छनैत बजलाह - मानि लैह, हम तोरा पछुआड में भांग तोड़य गेलहुँ । तोरा सॅं भेट नहि भेल । हम दु चारि टुस्सी तोड़ि लेल । पछाति तोरा कहि देलिऔह । तों बजलाह- नीक कैल जे लऽ लेल । यदि एहू पर हम संतुष्ट नहिं होइ और एहि बात पर अड़ि जाय जे तों पघरिया हांँसू लऽ कऽ हमर हाथ काटिए लैह त तों हमरा की बुझबह ? और तों सरिपहुँ हमर हाथ काटिलैह त तोरा लोक की बुझतौह ? हौ, ई लोकनि अजायब-घर में राखय योग्य छलाह ।

हम - खट्टर कका, अहाँ सॅं के बहस करौ ? परन्तु एहि भारत भूमि पर एक सॅं एक नामी राजा भेल छथि, जेना महाराज दुष्यन्त, राजा ययाति `` ` `

खट्टर कका - हॅं सुक्रिये नाम कि कुक्रिये नाम । दुष्यन्त तपोवन में जा मुनि-कन्या कैं गर्भ कऽ देलथिन्ह और पाछाँ कहलथिन्ह जे हम एहि युवती कैं चिन्हबो नहिं करैत छिऎन्ह । एहन भरी लंपट और कायर के हैत ? कोनो अँग्रेजक बेटी रहितैन्ह त ओही ठाम गोली मारि दितैन्ह । `` ` `` और ययाति कें हम की कहिऔन्ह? बुढारी में सौख भेलैन्ह त बेटा सॅं यौवन पैंच लऽ कऽ भोग कैलन्हि । हिनकर जोडा विश्व मे कतहु भेटतौह ? ````` परन्तु हम की बाजू ? एहि देशक इनारे में भांग घोराएल छैक ।

खट्टर कका दू बुन्द उत्सर्ग कय भरि लोटा भांग चढा गेलाह । पुनः तीव्र स्वर में कहय लगलाह - एहि देश में राजा सन कामुक ओ स्त्रैण पृथ्वी पर कतहु नहिं भेटतौह । बूझह त पुराण में दुइएटा चरित्र मुख्य । राजा ओ ब्राह्मण ।एक कामी, दोसर क्रोधी । और दूनू लोभी । केओ राज्य क पाछाँ केओ स्वर्ग क पाछाँ । से यदि काम, क्रोध ओ लोभक शिक्षा लेबाक हो त पुराण पढ्ह ।

हम कहलिऎन्ह - खट्टर कका, ई अहाँक अन्याय थीक । राजा द त हम नहिं कहब । किन्तु ब्राह्मण एहिठाम क आदर्श भऽ गेल छथि । देखू देवर्षि नारद केहन ज्ञानी छलाह .......

खट्टर कका – जिनका बिना झगडा लगौने पेट क अन्न नहिं पचलैन्ह ।

हम - ब्रम्हर्षि द्रोणाचार्य केहन तेजस्वी छलाह ........

खट्टर कका - जे स्वार्थवश एकलव्यक औंठा कतरबा लेलथिन्ह । आबक विद्यार्थी रहितैन्ह त फराके सॅं औठा देखा दितैन्ह ।

हम - राजर्षि विश्वामित्र केहन तपस्वी रहथि .......

खट्टर कका - जे अन्हार राति में चुपचाप वशिष्ठ मुनि क घेंट काट्क हेतु छपकि क ठाढ भऽ गेलाह !

हम - खट्टर कका, अहाँ त हमर मूहें बन्द कऽ दैत छी । परन्तु देखू, हम गुरु-भक्ति क दृष्टान्त दैत छी । आरुणि केहन आदर्श रहथि ?

खट्टर कका - मूर्ख रहथि । गुरु क खेत में पानि रोकबाक रहैन्ह त आरि बन्हितथि। अपने की पड़ि रहलाह ? हौ, ओहि तरहें लोक कतीकाल धरि क्रियाकर्म रोकने पड़ल रहि सकैत अछि ? एतबा नहिं फुरलैन्ह जे जैखन उठब तैखन सभटा पानि बहि जाएत । एहने एहने विद्यार्थी भरि दिन पात खरड़ि राति में धधरा कय पढैत छलाह ।

हम क्षुब्ध होइत कहलिऎन्ह - खट्टर कका, तखन एहन एहन कथा क कोनो उपयोगिता नहि ?

खट्टर कका बजलाह – उपयोगिता अवश्य । ताहि दिनक गुरु चालाक रहथि। विद्यार्थी भुसकौल होथि । एहन एहन उपाख्यान गढि पंडित लोकनि चेला सॅं चैला चिरबाबथि, खेत कमबाबथि । एहि तरहें सभ कथा में सभ कथा मे किछुने किछु अभिप्राय भरल छैक । कोनो ब्राह्मणक गाछ सॅं केओ नेबो-लताम तोरि नेने हैतैन्ह । तकरा लजाबक हेतु शंखक खिस्सा गढि देलथिन्ह । कोनो ब्राह्मण कैं राजा गाय दऽ कऽ छीनि लेने हेतैन्ह । तकरा डराबक हेतु नृगक पिहानी रचि देलथिन्ह । एवं प्रकारें अनेको आख्यान बनि गेल । कोनो राजा क ठककहेतु ;कोनो विद्यार्थी कैं परतारक हेतु ; कोनो शूद्र कैं सरि करक हेतु ; कोनो स्त्री कैं नाथक हेतु । कथाकार लोकनि तेना बढा-चढा कऽ टाटक ठाढ कैनेछथि जेना कौआ कुकुड कैं डरैबाक हेतु मकइक खेत में ढेलबाँस बनाओल जाइ छैक । परन्तु आबक लोक कैं एना परतारब कठिन ।

हम पुछलिऎन्ह - तखन पौराणिक आदर्शक किछु मुल्य नहिं ?

खट्टर कका बजलाह - वैह मुल्य जे 'म्युजियम' मे राखल ढालि-तरुआरि कहोइत छैक । ओ प्रदर्शन लेल रहैत छैक , व्यवहार क हेतु नहिं ।

हमरा सोचैत देखि खट्टर कका कहय लगलाह – हौ, बात ई छैक जे पुराणमें जाहि नैतिक आदर्शक चित्रण कैल गेलैक तकरा पराकाष्ठा पर पहुचा देल गेलैक । परिणाम ई भेलैक जे ओकर स्वांग (विद्रुप) बनि गेल छैक । आतिथ्यक महिमा देखैबाक भेल त 'फल्लां बेटा कें काटि कऽ थारी में परसि देलन्हि '।सतीत्वक महिमा देखैबाक भेल त फल्लींक कोंचा सॅं आगि बहरा गेलैन्ह । कोनो सती सूर्य क चक्का रोकि दैत छथि , केओ यमराज कें पछाडि दैत छथि। बिना अतिशयोक्ति हमरा लोकनि कैं बाजहि नहिं अबैत अछि । कोनो बात पसिन्द त सहस्र अश्वमेघ क तुल्य ! जकर स्तुति करय लागब तकरा "त्वमर्कः त्वं सोमः" करैत आकाश में ठेका देब ! जकर निन्दा करय लागब तकरा असुर वा ससुर बनबैत पाताल में धसा देब ! ई बात वैदिके युग सॅं आबि रहल अछि बूझह त अतिशयोक्ति हमरा सभक वंशज गुण थीक ।

हम - खट्टर कका, अतिशयोक्ति त किछु ने किछु सभ देश क साहित्य में भेटत ।

खट्टर कका कतरा करैत बजलाह – हॅं । परन्तु हमरा लोकनिक रोम-रोम में भीजल अछि । वेद, पुराण, धर्मशास्त्र, ज्योतिष, आयुर्वेद, साहित्य, संगीत,चित्रकला, मुर्तिविद्या - सभ में वैह बात भेटतौह । आँखि पैघ नीक, त कानधरि सटा देल गेल । पयोधर पुष्ट नीक, त कलश सम-सन बना देल गेल कवि लोकनि कैं ओहू सॅं मन नहिं भरलैन्ह त गजकुम्भ सॅं उपमा दैत-दैत पर्वत धरि ठेका देलथिन्ह । हौ, सभ बात क एकटा सीमा होइत छैक । एहि ठाम त कोनो सीमे नहि । मुखमस्तीति वक्तव्यं दशहस्ता हरीतिकी । जिनका जे फुरलैन्ह से लिखि गेलाह । फलस्वरूप अतिशयोक्ति क बाजार लागि गेल । केओ पहाड़ उठा लैत छथि । केओ समुद्र सोखि जाइत छथि। केओ पृथ्वी क दाँत तर धऽ लैत छथि । केओ सूर्य कैं घोटि जाइ छथि मूँह ओ हाथ क कोनो संख्ये नहिं ।केओ चतुरानन, केओ षडानन ! केओ चतुर्भुज, केओ अष्टभुज, केओ सहस्रभुज ! केओ एक सहस्र वर्ष युद्ध कैलन्हि, केओ दस सहस्र वर्ष तपस्या कैलन्हि, केओ बीस सहस्र वर्ष भोग कैलन्हि ` `` ` ` `! बूझह त यैह अतिशयोक्ति हमरा सभ कैं खा गेल ।

हम कहलिऎन्ह -खट्टर कका, त कि ई सभ बात कपोलकल्पित छैक ?

खट्टर कका व्यंग्यपूर्वक बजलाह - यावत पर्यन्त अपना देशक धौत परीक्षोत्तीर्ण पुराणाचार्य लोकनि जीवित छथि तावत एहन बात बजबाक दुःसाहस के कय सकैत अछि ? हमर एकटा महावीरजी आवि जाथि त समस्त संसारक सेना कैं नाडडि में लपेटि लेथि । एकटा अगस्त्य मुनि आबि जाथि त सभ जहाज समेत समुद्र कैं चूरु में उठा क पीबि जाथि । एकटा बमभोला तेसर नेत्र उघारथि त सभ बमगोला बला बम बाजि जाथि । एकटा बराह भगवान अवतार लेथि त पृथ्वी कैं फुटबाल जकाँ उठा क फेकि देथि । तखन आन आन देश बला बाप बाप क चिचिया उठताह । यूरोप अमेरिका आविष्कार करैत रहथु ।हमरा लोकनि क काज अवतारे सॅं चलि जाइत अछि । एकटा अवतार एखन भऽ जाइत त सभटा समस्या हल भऽ जाइत । कोशी क डाँटि दितथि, बाढि बन्द भऽ जाइत । नख लऽ कऽ चीर दितथि, नहर बनि जाइत । पृथ्वी कैं एक वाण मारितथि, अन्न उपजि जाइत । देह क मैल छोडा कऽ फेंकि दितथि, कलकारखाना बनि जाइत । देश तेहन समृद्ध भऽ जाइत जे लोक घृते लऽ कऽ लघुशंका करैत ।

हम कहलिऎन्ह - खट्टर कका, अहाँ त अतिशयोक्ति क धारे बहा देलिऎक !

खट्टर कका बिहुँसैत बजलाह – हौ, वंशज ककर छी ? रक्त क धर्म कतहु छुटलैक अछि ? विज्ञानक उन्नति करबा लेल त पृथ्वी पर और और जाति अछिए । कल्पना- विलास क भार सेहो त ककरो उपर रहक चाही । से मनमोदक बनैबाक भार हमरा लोकनि पर अछि ।

हम कहलिऎन्ह - खट्टर कका, मानि लियऽ जे किछु अतिरंजनो होय तथापि आब ओ सत्ययुगी आदर्श पृथ्वी पर भेटि सकैत अछि ।

खट्टर कका नोसि लैत बजलाह – हौ, सत्ययुग क लोक कोनो दोसर प्रकारक जीव नहिं होइत छलाह । सभ युग में मनुष्य क स्वभाव एक्के रंग होइत छैक । तखन परिस्थिति क भेद सॅं व्यवहार में अन्तर पडैत पडैत छैक । देखह,पहिने लोकक संख्या कम्म छलैक । जतबा अन्न फल उपजैत छलैक सैह नहिं खा सकैत छल । एहि ठाम अत्रि क आश्रम, दू कोस दूर वशिष्ठ क आश्रम । बीच में ककरो घर नहिं । अत्रि कैं एक हजार गाय वशिष्ठ कैं दू हजार गाय । आब एतेक दूध-दही की हो ? तैं अतिथि-देव कैं खेहारि-खेहारि कऽ सत्कार कैल जाइन्ह । ओतबा घृत के खा सकैत ? जे बचैत छल से जरा कऽ होम कऽ देल जाइ छल । ताहि दिन सभ कैं अपना जरूरति सॅं फाजिले फाजिले छलैक ।केओ चोरी किऎक करैत ? परन्तु आइ जनसंख्या बहूत बढि गेलैक अछि ।पृथ्वी ओतबे, खैनिहार दसगुना बेसी । तैं अत्रि-वशिष्ठ क सन्तान एक दोसरा पेट खातिर छोपि रहल छथिन्ह । यदि लोक क आबादी कम्म भय दशमांश पर आवि जाय त फेर सत्ययुग पलटि आबय पुनः गोरस क धार बहऽ लागय।

हम - तखन सत्ययुग ओ कलियुग में अन्तर कोन बात लऽ कऽ ?

खट्टर कका – हौ, लोक सॅं खाद्य बेसी त सत्ययुग । खाद्य लोक बेसी त कलियुग।पूर्वहु में कहियो अकाल पडि जाइत छलैक त चोरी आदि कलि क धर्म प्रकट भऽ जाइत छलैक । एक वेर अश्वत्थामा कैं दूध नहिं भेटलैन्ह त पिठार घोरिकऽ पिउलन्हि । एखन देश में करोडो अश्वत्थामा मौजूद छथि ।

हम - तखन प्राचीन ओ नवीन युग में धर्ममूलक भेद नहि छैक ?

खट्टर कका- धर्ममूलक नहि, अर्थमूलक भेद छैक । एही आर्थिक आधार पर समाजक नैतिक आदर्श बनैत छैक । हम त बुझैत छी जे अर्थे धर्म क मूल थीक । जौं अर्थ हटा दी त कोनो आदर्श क मूल्य नहिं ।

हम - से कोना ? खट्टर कका ?

खट्टर कका- देखह, सभ सॅं बडका धर्म अछि दान ओ दया । दू मुट्ठी अछि त दोसरा कें एक मुट्ठी दियौक । जकरा रहबे नहिं करतैक से अनका देतैक की ? तैं हम कहैत छिऔह जे धर्म क मूल अर्थ ।

हम - परन्तु आनो आन धर्म त छैक ?

खट्टर कका- हॅं । परन्तु विचारि कऽ देखह त अर्थ विना कोनो धर्मक अर्थ नहिं । गौ-गंगा-गीता सभ आदर्श ओही भित्ति पर ठाढ छथि ।

हम – ई बात नीक जकाँ बुझबा में नहिं आएल ।

खट्टर कका – देखह, गौ सॅं दूध ओ खेती में सहायता । तैं ओ माता । गंगा जी कप्रसादात् सिंचाइ ओ वाणिज्य । तैं ओ पूज्य । गीता क कृपा सॅं सभ अपन-अपन स्वधर्म (व्यवसाय) में लागल रहय, केओ दोसरा क वृत्ति वा जीविका में हस्तक्षेप नहिं करैक । तैं ओ मान्य । सभ में गूढ तात्पर्य भरल छैक ।

हम - तखन एकटा संदेह होइछ, खट्टर कका ! एहि देश मे अर्थ कैं अतेक तुच्छ दृष्टि सॅं किऎक देखल गेल छैक ?

खट्टर कका बजलाह – हौ, यैह त ढोंग छैक । ऊपर सॅं कहब जे द्रव्य तुच्छ थीक । और भितरे भीतर "टका धर्मः टका कर्म टका हि परमा गतिः।" ओही खातिर एतेक रासे दान-दक्षिणा क महात्म्य गाओल गेल छैक । द्रव्य में एतबा शक्ति छैक जे कतबो पाप कैला उत्तर पाक भऽ जाउ । गोदान वा स्वर्णदान करु, व्यभिचार क दोष मेटा जाएत । सोना-चानी में हत्या पचैबाक सामर्थ्य छैक ।आइयो और ताहू दिन । एहि भूमि खातिर ताहू दिन कुरुक्षेत्र मचैत छल, आइयो मचैत अछि । मनुष्य कहाँ बदलल अछि ? सम्पत्ति क महिमा सभ दिन सॅं छैक । छुच्छ आदर्शक कोन मोल ? परन्तु हौ, बाबू, ब्राह्मण देवता चलाक छलाह । जौं द्रव्य कैं तुच्छ नहिं कहितथिन्ह त लोक दितैन्ह कोना ? ओही तुच्छ द्रव्य क निमित्त एतेक रासे राजा हरिश्चन्द्र ओ नृग सन दानी क उपाख्यान पसारल गेल अछि ।

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